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शेर
अहबाब का शिकवा क्या कीजिए ख़ुद ज़ाहिर ओ बातिन एक नहीं
लब ऊपर ऊपर हँसते हैं दिल अंदर अंदर रोता है
हफ़ीज़ जालंधरी
शेर
अपना बातिन ख़ूब है ज़ाहिर से भी ऐ जान-ए-जाँ
आँख के लड़ने से पहले जी लड़ा बैठे हैं हम
हातिम अली मेहर
शेर
मेरा ज़ाहिर देखने वाले मिरा बातिन भी देख
घर के बाहर है उजाला घर के अंदर कुछ नहीं
महफूजुर्रहमान आदिल
शेर
मोहब्बत तीर है और तीर बातिन छेद देता है
मगर निय्यत ग़लत हो तो निशाने पर नहीं लगता
अहमद कमाल परवाज़ी
शेर
चश्म-ए-बातिन में से जब ज़ाहिर का पर्दा उठ गया
जो मुसलमाँ था वही हिन्दू नज़र आया मुझे
मीर कल्लू अर्श
शेर
कुछ न पूछो ज़ाहिदों के बातिन ओ ज़ाहिर का हाल
है अँधेरा घर में और बाहर धुआँ बत्ती चराग़
अहमद हुसैन माइल
शेर
मिरे बुत-ख़ाने से हो कर चला जा काबे को ज़ाहिद
ब-ज़ाहिर फ़र्क़ है बातिन में दोनों एक रस्ते हैं
हफ़ीज़ जौनपुरी
शेर
रुश्द-ए-बातिन की तलब है तो कर ऐ शैख़ वो काम
पीर-ए-मय-ख़ाना जो ज़ाहिर में कुछ इरशाद करे
बक़ा उल्लाह 'बक़ा'
शेर
साफ़ क्या हो सोहबत-ए-ज़ाहिर से बातिन का ग़ुबार
मुँह नज़र आता नहीं आईना-ए-तस्वीर में