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शेर
तुम आओ मर्ग-ए-शादी है न आओ मर्ग-ए-नाकामी
नज़र में अब रह-ए-मुल्क-ए-अदम यूँ भी है और यूँ भी
साइल देहलवी
शेर
बाज़ीगाह-ए-दार-ओ-रसन में मय-कदा-ए-फ़िक्र-ओ-फ़न में
हम रिंदों से रौनक़ है हम दरवेशों से मेले हैं
अफ़ज़ल परवेज़
शेर
ये क्या है कि ज़िक्र-ए-ग़म-ए-अय्याम बहुत है
शीशे में अभी तो मय-ए-गुलफ़ाम बहुत है
वफ़ा शाहजहाँ पुरी
शेर
ग़म-ओ-अलम भी हैं तुम से ख़ुशी भी तुम से है
नवा-ए-सोज़ में तुम हो सदा-ए-साज़ में तुम
आतिश बहावलपुरी
शेर
ग़म-ओ-कर्ब-ओ-अलम से दूर अपनी ज़िंदगी क्यूँ हो
यही जीने का सामाँ हैं तो फिर इन में कमी क्यूँ हो
मुमताज़ अहमद ख़ाँ ख़ुशतर खांडवी
शेर
ग़म-ए-अय्याम पे यूँ ख़ुश हैं तिरे दीवाने
ग़म-ए-अय्याम भी इक तेरी अदा हो जैसे
अकबर अली खान अर्शी जादह
शेर
झाड़ कर गर्द-ए-ग़म-ए-हस्ती को उड़ जाऊँगा मैं
बे-ख़बर ऐसी भी इक परवाज़ आती है मुझे
अब्दुल हमीद अदम
शेर
अश्क-ए-ग़म-ए-उल्फ़त में इक राज़-ए-निहानी है
पी जाओ तो अमृत है बह जाए तो पानी है