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शेर
हर इक फ़िक़रे पे है झिड़की तो है हर बात पर गाली
तुम ऐसे ख़ूबसूरत हो के इतने बद-ज़बाँ क्यूँ हो
मुंशी देबी प्रसाद सहर बदायुनी
शेर
ब-वक़्त-ए-बोसा-ए-लब काश ये दिल कामराँ होता
ज़बाँ उस बद-ज़बाँ की मुँह में और मैं ज़बाँ होता
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
शेर
कल 'नज़ीर' उस ने जो पूछा ब-ज़बान-ए-पंजाब
नेह विच मेंडी ए की हाल-ए-तुसादा वे मियाँ
नज़ीर अकबराबादी
शेर
बाद-ए-नफ़रत फिर मोहब्बत को ज़बाँ दरकार है
फिर अज़ीज़-ए-जाँ वही उर्दू ज़बाँ होने लगी
मुहम्मद याक़ूब आमिर
शेर
मिरे बच्चों में सारी आदतें मौजूद हैं मेरी
तो फिर इन बद-नसीबों को न क्यूँ उर्दू ज़बाँ आई
मुनव्वर राना
शेर
हम भी कुछ मुँह से जो कह बैठें तो फिर कितनी रहे
देखिए अच्छी नहीं ये बद-ज़बानी आप की
लाला माधव राम जौहर
शेर
ख़ुदा ने नेक सूरत दी तो सीखो नेक बातें भी
बुरे होते हो अच्छे हो के ये क्या बद-ज़बानी है