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शेर
जिस क़दर नफ़रत बढ़ाई उतनी ही क़ुर्बत बढ़ी
अब जो महफ़िल में नहीं है वो तुम्हारे दिल में है
आरज़ू लखनवी
शेर
इधर से जितनी यगानगत की उधर से उतनी हुई जुदाई
बढ़ाई थोड़ी सी जब इधर से बहुत सी तुम ने उधर घटाई
मिर्ज़ा अली लुत्फ़
शेर
कोई क्यूँ किसी का लुभाए दिल कोई क्या किसी से लगाए दिल
वो जो बेचते थे दवा-ए-दिल वो दुकान अपनी बढ़ा गए