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शेर
कहें हम बहर-ए-बे-पायान-ए-ग़म की माहियत किस से
न लहरों से कोई वाक़िफ़ न कोई थाह जाने है
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
शेर
तुम भी थे सरशार मैं भी ग़र्क-ए-बहर-ए-रंग-ओ-बू
फिर भला दोनों में आख़िर ख़ुद-कशीदा कौन था
अशअर नजमी
शेर
जिन्हें हम बुलबुला पानी का दिखते हैं कहो उन से
नज़र हो देखने वाली तो बहर-ए-बे-कराँ हम हैं
सदा अम्बालवी
शेर
कल बज़्म में सब पर निगह-ए-लुतफ़-ओ-करम थी
इक मेरी तरफ़ तू ने सितमगार न देखा
शैख़ मोहम्मद रोशन जोशिश लखनवी
शेर
दुआएँ माँगी हैं साक़ी ने खोल कर ज़ुल्फ़ें
बसान-ए-दस्त-ए-करम अब्र-ए-दजला-बार बरस