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शेर
मिरी ज़िंदगी का महवर यही सोज़-ओ-साज़-ए-हस्ती
कभी जज़्ब-ए-वालहाना कभी ज़ब्त-ए-आरिफ़ाना
फ़ारूक़ बाँसपारी
शेर
लम्स-ए-सदा-ए-साज़ ने ज़ख़्म निहाल कर दिए
ये तो वही हुनर है जो दस्त-ए-तबीब-ए-जाँ में था
अहमद शहरयार
शेर
ऐ नवा-साज़-ए-तमाशा सर-ब-कफ़ जलता हूँ मैं
इक तरफ़ जलता है दिल और इक तरफ़ जलता हूँ मैं
मिर्ज़ा ग़ालिब
शेर
उस बला-ए-जाँ से 'आतिश' देखिए क्यूँकर बने
दिल सिवा शीशे से नाज़ुक दिल से नाज़ुक ख़ू-ए-दोस्त
हैदर अली आतिश
शेर
बला-ए-जाँ थी जो बज़्म-ए-तमाशा छोड़ दी मैं ने
ख़ुशा ऐ ज़िंदगी ख़्वाबों की दुनिया छोड़ दी मैं ने
अबु मोहम्मद सहर
शेर
मिरे साज़-ए-नफ़स की ख़ामुशी पर रूह कहती है
न आई मुझ को नींद और सो गया अफ़्साना-ख़्वाँ मेरा
इज्तिबा रिज़वी
शेर
साज़-ए-उल्फ़त छिड़ रहा है आँसुओं के साज़ पर
मुस्कुराए हम तो उन को बद-गुमानी हो गई