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शेर
न जाने कितनी शमएँ गुल हुईं कितने बुझे तारे
तब इक ख़ुर्शीद इतराता हुआ बाला-ए-बाम आया
आनंद नारायण मुल्ला
शेर
सुब्ह-दम मुझ से लिपट कर वो नशे में बोले
तुम बने बाद-ए-सबा हम गुल-ए-नसरीन हुए