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शेर
ये माना सैल-ए-अश्क-ए-ग़म नहीं कुछ कम मगर 'अरशद'
ज़रा उतरा नहीं दरिया कि बंजर जाग उठता है
अरशद कमाल
शेर
देख ज़िंदाँ से परे रंग-ए-चमन जोश-ए-बहार
रक़्स करना है तो फिर पाँव की ज़ंजीर न देख
मजरूह सुल्तानपुरी
शेर
नासिर काज़मी
शेर
हक़ीक़ी और मजाज़ी शायरी में फ़र्क़ ये पाया
कि वो जामे से बाहर है ये पाजामे से बाहर है