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शेर
उठा जो मीना-ब-दस्त साक़ी रही न कुछ ताब-ए-ज़ब्त बाक़ी
तमाम मय-कश पुकार उठ्ठे यहाँ से पहले यहाँ से पहले
शकील बदायूनी
शेर
ये ज़ुल्फ़-बर-दोश कौन आया ये किस की आहट से गुल खिले हैं
महक रही है फ़ज़ा-ए-हस्ती तमाम आलम बहार सा है
साग़र सिद्दीक़ी
शेर
सुन रहा हूँ अभी तक मैं अपनी ही आवाज़ की बाज़गश्त
यानी इस दश्त में ज़ोर से बोलना भी अकारत गया
अब्बास ताबिश
शेर
बज़्म-ए-याराँ है ये साक़ी मय नहीं तो ग़म न कर
कितने हैं जो मय-कदा बर-दोश हैं यारों के बीच
गणेश बिहारी तर्ज़
शेर
उस के मक़्तल में मिरा ख़ून बटा दस्त-ब-दस्त
ख़ूब-रू जैसे लगाते हैं हिना दस्त-ब-दस्त