aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "barham"
हम आह भी करते हैं तो हो जाते हैं बदनामवो क़त्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होता
ज़िंदगी से ज़िंदगी रूठी रहीआदमी से आदमी बरहम रहा
तुझ से बरहम हूँ कभी ख़ुद से ख़फ़ाकुछ अजब रफ़्तार है तेरे बग़ैर
न हो बरहम जो बोसा बे-इजाज़त ले लिया मैं नेचलो जाने दो बेताबी में ऐसा हो ही जाता है
दुश्मनों को दोस्त भाई को सितमगर कह दियालोग क्यूँ बरहम हैं क्या शीशे को पत्थर कह दिया
गिला मुझ से था या मेरी वफ़ा सेमिरी महफ़िल से क्यूँ बरहम गए वो
कुछ तो हस्सास हम ज़ियादा हैंकुछ वो बरहम ज़ियादा होता है
इधर आ हम दिखाते हैं ग़ज़ल का आइना तुझ कोये किस ने कह दिया गेसू तिरे बरहम नहीं प्यारे
ज़ुल्फ़-ए-बरहम की जब से शनासा हुईज़िंदगी का चलन मुजरिमाना हुआ
हमारी ज़िंदगी कहने की हद तक ज़िंदगी है बसये शीराज़ा भी देखा जाए तो बरहम है बरसों से
क्या सुनाते हो कि है हिज्र में जीना मुश्किलतुम से बरहम पे मरने से तो आसाँ होगा
होती है तेरे नाम से वहशत कभी कभीबरहम हुई है यूँ भी तबीअत कभी कभी
मैं ने 'फ़ानी' डूबती देखी है नब्ज़-ए-काएनातजब मिज़ाज-ए-यार कुछ बरहम नज़र आया मुझे
बरहमन कहता था बरहम शैख़ बोल उठा अहदहर्फ़ के इक फेर से दोनों में झगड़ा हो गया
बरहम हैं मुझ पे इस लिए दोनों तरफ़ के लोगदीवार उठ गई थी तो दर क्यूँ बनाया है
दूर तक फैला हुआ है एक अन-जाना सा ख़ौफ़इस से पहले ये समुंदर इस क़दर बरहम न था
इसी पे शहर की सारी हवाएँ बरहम थींकि इक दिया मिरे घर की मुंडेर पर भी था
हम-नशीं देखी नहूसत दास्तान-ए-हिज्र कीसोहबतें जमने न पाई थीं कि बरहम हो गईं
तमाम अंजुमन-ए-वाज़ हो गई बरहमलिए हुए कोई यूँ साग़र-ए-शराब आया
तुझ से मिल के भी तेरा इंतिज़ार रहता हैसुब्ह रू-ए-ख़ंदाँ से शाम ज़ुल्फ़-ए-बरहम तक
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