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शेर
रह-ए-इश्क़-ओ-वफ़ा भी कूचा-ओ-बाज़ार हो जैसे
कभी जो हो नहीं पाता वो सौदा याद आता है
अबु मोहम्मद सहर
शेर
किसी से इश्क़ हो जाने को अफ़्साना नहीं कहते
कि अफ़्साने मता-ए-कूचा-ओ-बाज़ार होते हैं
सय्यद अमीन अशरफ़
शेर
अब नहीं जन्नत मशाम-ए-कूचा-ए-यार की शमीम
निकहत-ए-ज़ुल्फ़ क्या हुई बाद-ए-सबा को क्या हुआ
अब्दुल मजीद सालिक
शेर
तअ'ज्जुब कुछ नहीं 'दाना' जो बाज़ार-ए-सियासत में
क़लम बिक जाएँ तो सच बात लिखना छोड़ देते हैं