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शेर
मुग़ीसुद्दीन फ़रीदी
शेर
इक ख़याल-ओ-ख़्वाब है ए 'शोर' ये बज़्म-ए-जहाँ
यार और जाम-ओ-सुबू सब कुछ है और फिर कुछ नहीं
जोर्ज पेश शोर
शेर
इक माँ के दम से ज़ीस्त में रौनक़ थी बरक़रार
अब वो नहीं तो रौनक़-ए-बज़्म-ए-जहाँ नहीं
डॉ. जाफ़र अस्करी
शेर
पौ फटते ही 'रियाज़' जहाँ ख़ुल्द बन गया
ग़िल्मान-ए-महर साथ लिए आई हूर-ए-सुब्ह
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
शेर
लोगों को अपनी फ़िक्र है लेकिन मुझे नदीम
बज़्म-ए-हयात-ओ-नज़्म-ए-गुलिस्ताँ की फ़िक्र है
अब्दुल मतीन नियाज़
शेर
बज़्म-ए-हुस्न-ओ-इश्क़ में 'अकबर' की अफ़्सुर्दा-दिली
दाद के लाएक़ नहीं बे-दाद के क़ाबिल नहीं