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शेर
शिकवा-ए-बे-चारगी 'मैकश' किसी से क्यों करें
'इश्क़ तो महरूमी-ए-दिल के सिवा कुछ भी नहीं
उस्ताद अज़मत हुसैन ख़ाँ
शेर
दीदनी है अब शिकस्त-ए-ज़ब्त की बे-चारगी
मुस्कुराता हूँ मगर दिल दर्द से लबरेज़ है
अकबर हैदरी कश्मीरी
शेर
जो चराग़ सारे बुझा चुके उन्हें इंतिज़ार कहाँ रहा
ये सुकूँ का दौर-ए-शदीद है कोई बे-क़रार कहाँ रहा
अदा जाफ़री
शेर
बे-कसी के दर्द ने लौ दी जल उट्ठा इक चराग़
रफ़्ता रफ़्ता उस से फिर सारा जहाँ रौशन हुआ
सईदुल ज़फर चुग़ताई
शेर
इस तरह बे-कैफ़ गुज़रा ऐ 'हबीब' अपना शबाब
जिस तरह से सूने घर में जलता है कोई चराग़