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शेर
कभी बे-कली कभी बे-दिली है अजीब इश्क़ की ज़िंदगी
कभी ग़ुंचा पे जाँ फ़िदा कभी गुल्सिताँ से ग़रज़ नहीं
हबीब अहमद सिद्दीक़ी
शेर
गए सब मर्द रह गए रहज़न अब उल्फ़त से कामिल हूँ
ऐ दिल वालो मैं इन दिल वालियों से सख़्त बे-दिल हूँ