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शेर
हमारी महफ़िलों में बे-हिजाब आने से क्या होगा
नहीं जब होश में हम जल्वा फ़रमाने से क्या होगा
इम्तियाज़ अली अर्शी
शेर
फ़र्क़ इतना है कि तू पर्दे में और मैं बे-हिजाब
वर्ना मैं अक्स-ए-मुकम्मल हूँ तिरी तस्वीर का
असद भोपाली
शेर
आस्तीं उस ने जो कुहनी तक चढ़ाई वक़्त-ए-सुब्ह
आ रही सारे बदन की बे-हिजाबी हाथ में