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शेर
जो हुस्न-ओ-इश्क़ का हम-वज़्न इम्तिहाँ ठहरा
वो बे-दहन नज़र आया में बे-ज़बाँ ठहरा
मुंशी खैराती लाल शगुफ़्ता
शेर
जो चराग़ सारे बुझा चुके उन्हें इंतिज़ार कहाँ रहा
ये सुकूँ का दौर-ए-शदीद है कोई बे-क़रार कहाँ रहा
अदा जाफ़री
शेर
हम रू-ब-रू-ए-शम्अ हैं इस इंतिज़ार में
कुछ जाँ परों में आए तो उड़ कर निसार हों