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शेर
शम्अ के मानिंद अहल-ए-अंजुमन से बे-नियाज़
अक्सर अपनी आग में चुप चाप जल जाते हैं लोग
हिमायत अली शाएर
शेर
कहाँ मिलता है जाँ अन्क़ा है ऐसा बे-नियाज़ आशिक़
कि ख़्वाँ और माँ दिया है सब उड़ा और फिर नहीं पर्वा
आबरू शाह मुबारक
शेर
इश्क़ है बे-गुदाज़ क्यूँ हुस्न है बे-नियाज़ क्यूँ
मेरी वफ़ा कहाँ गई उन की जफ़ा को क्या हुआ
अब्दुल मजीद सालिक
शेर
हर शय से हो के क्यों न रहे बे-नियाज़ वो
हर शय जहाँ में जिस को तमाशा दिखाई दे
माया खन्ना राजे बरेलवी
शेर
मुझे दोनों जहाँ में एक वो मिल जाएँ गर 'अख़्तर'
तो अपनी हसरतों को बे-नियाज़-ए-दो-जहाँ कर लूँ
अख़्तर शीरानी
शेर
मोहब्बत ख़ुद मोहब्बत का सिला है 'आरफ़ी' लेकिन
कोई आसान है क्या बे-नियाज़-ए-मुद्दआ होना
अब्दुल हई आरफ़ी
शेर
वो और होंगे जिन को है फ़िक्र-ए-ज़ियान-ओ-सूद
दुनिया से बे-नियाज़ है मेरी ग़ज़ल का रंग