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शेर
बताएँ क्या कि बेचैनी बढ़ाते हैं वही आ कर
बहुत बेचैन हम जिन के लिए मालूम होते हैं
मुज़फ़्फ़र हनफ़ी
शेर
हर चंद बगूला मुज़्तर है इक जोश तो उस के अंदर है
इक वज्द तो है इक रक़्स तो है बेचैन सही बर्बाद सही
अकबर इलाहाबादी
शेर
अब समझ आया हमें ये रूह क्यों बेचैन है
फिर रहे हैं ज़ेहन पर हम बोझ लादे जिस्म का