aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "bhaabhii"
इश्क़ इक 'मीर' भारी पत्थर हैकब ये तुझ ना-तवाँ से उठता है
तू कहानी ही के पर्दे में भली लगती हैज़िंदगी तेरी हक़ीक़त नहीं देखी जाती
भरी दुनिया में जी नहीं लगताजाने किस चीज़ की कमी है अभी
ऐ शम्अ' तुझ पे रात ये भारी है जिस तरहमैं ने तमाम उम्र गुज़ारी है इस तरह
टूट पड़ती थीं घटाएँ जिन की आँखें देख करवो भरी बरसात में तरसे हैं पानी के लिए
भरी बज़्म में राज़ की बात कह दीबड़ा बे-अदब हूँ सज़ा चाहता हूँ
भरी बहार में इक शाख़ पर खिला है गुलाबकि जैसे तू ने हथेली पे गाल रक्खा है
शबनम के आँसू फूल पर ये तो वही क़िस्सा हुआआँखें मिरी भीगी हुई चेहरा तिरा उतरा हुआ
बहुत उदास था उस दिन मगर हुआ क्या थाहर एक बात भली थी तो फिर बुरा क्या था
अब तक मिरी यादों से मिटाए नहीं मिटताभीगी हुई इक शाम का मंज़र तिरी आँखें
उन रस भरी आँखों में हया खेल रही हैदो ज़हर के प्यालों में क़ज़ा खेल रही है
आप की कौन सी बढ़ी इज़्ज़तमैं अगर बज़्म में ज़लील हुआ
सोचो तो सिलवटों से भरी है तमाम रूहदेखो तो इक शिकन भी नहीं है लिबास में
भीगी मिट्टी की महक प्यास बढ़ा देती हैदर्द बरसात की बूँदों में बसा करता है
प्यास बढ़ती जा रही है बहता दरिया देख करभागती जाती हैं लहरें ये तमाशा देख कर
मोहब्बत, हिज्र, नफ़रत मिल चुकी हैमैं तक़रीबन मुकम्मल हो चुका हूँ
कभी उन मद-भरी आँखों से पिया था इक जामआज तक होश नहीं होश नहीं होश नहीं
शुक्रिया तेरा तिरे आने से रौनक़ तो बढ़ीवर्ना ये महफ़िल-ए-जज़्बात अधूरी रहती
आज फिर बुझ गए जल जल के उमीदों के चराग़आज फिर तारों भरी रात ने दम तोड़ दिया
उस जगह जा के वो बैठा है भरी महफ़िल मेंअब जहाँ मेरे इशारे भी नहीं जा सकते
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