aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "bharnii"
तुम्हारी याद के जब ज़ख़्म भरने लगते हैंकिसी बहाने तुम्हें याद करने लगते हैं
ऐसे रिश्ते का भरम रखना कोई खेल नहींतेरा होना भी नहीं और तिरा कहलाना भी
घर से निकल कर जाता हूँ मैं रोज़ कहाँइक दिन अपना पीछा कर के देखा जाए
इश्क़ इक 'मीर' भारी पत्थर हैकब ये तुझ ना-तवाँ से उठता है
तू कहानी ही के पर्दे में भली लगती हैज़िंदगी तेरी हक़ीक़त नहीं देखी जाती
ये ज़रूरी है कि आँखों का भरम क़ाएम रहेनींद रक्खो या न रक्खो ख़्वाब मेयारी रखो
भरी दुनिया में जी नहीं लगताजाने किस चीज़ की कमी है अभी
ऐ शम्अ' तुझ पे रात ये भारी है जिस तरहमैं ने तमाम उम्र गुज़ारी है इस तरह
टूट पड़ती थीं घटाएँ जिन की आँखें देख करवो भरी बरसात में तरसे हैं पानी के लिए
भरी बज़्म में राज़ की बात कह दीबड़ा बे-अदब हूँ सज़ा चाहता हूँ
भरी बहार में इक शाख़ पर खिला है गुलाबकि जैसे तू ने हथेली पे गाल रक्खा है
जो आला-ज़र्फ़ होते हैं हमेशा झुक के मिलते हैंसुराही सर-निगूँ हो कर भरा करती है पैमाना
ये फूल मुझे कोई विरासत में मिले हैंतुम ने मिरा काँटों भरा बिस्तर नहीं देखा
सहमा सहमा डरा सा रहता हैजाने क्यूँ जी भरा सा रहता है
बहुत उदास था उस दिन मगर हुआ क्या थाहर एक बात भली थी तो फिर बुरा क्या था
ये हवाएँ उड़ न जाएँ ले के काग़ज़ का बदनदोस्तो मुझ पर कोई पत्थर ज़रा भारी रखो
उन रस भरी आँखों में हया खेल रही हैदो ज़हर के प्यालों में क़ज़ा खेल रही है
नाला-ए-बुलबुल-ए-शैदा तो सुना हँस हँस करअब जिगर थाम के बैठो मिरी बारी आई
एक जैसे लग रहे हैं अब सभी चेहरे मुझेहोश की ये इंतिहा है या बहुत नश्शे में हूँ
जिसे इश्क़ का तीर कारी लगेउसे ज़िंदगी क्यूँ न भारी लगे
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