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शेर
तुझ से मिलने पर बुत-ए-बेदर्द ये उक़्दा खुला
भोली-भाली शक्ल वाले होते हैं जल्लाद भी
जलील मानिकपूरी
शेर
वाँ हिना-बंदी थी और ज़ुल्फ़ को सुलझाना था
याँ परेशानी थी और ख़ून-ए-जिगर खाना था
लाला मौजी राम मौजी
शेर
जब से मअ'नी-बंदी का चर्चा हुआ ऐ 'मुसहफ़ी'
ख़लते में जाता रहा हुस्न-ए-ज़बान-ए-रेख़्ता
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
हुक्म-ए-लब-बंदी फ़रोग़-ए-दास्ताँ बनता गया
ज़ख़्म को जितना दबाया ख़ूँ-चकाँ बनता गया
सय्यद नवाब अफ़सर लखनवी
शेर
उस्तुख़्वाँ-बंदी-ए-अल्फ़ाज़ का आलम तू देख
अहल-ए-मअ'नी की जुदा होवे है तक़रीर का डोल