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शेर
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें
अहमद फ़राज़
शेर
हम तो सुनते थे कि मिल जाते हैं बिछड़े हुए लोग
तू जो बिछड़ा है तो क्या वक़्त ने गर्दिश नहीं की
अंबरीन हसीब अंबर
शेर
बिछड़े मुझ से इस तरह वो ज़िंदगी के हम-सफ़र
बुझ गए हों जलते जलते जैसे रस्ते के चराग़