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शेर
बिल-आख़िर थक हार के यारो हम ने भी तस्लीम किया
अपनी ज़ात से इश्क़ है सच्चा बाक़ी सब अफ़्साने हैं
इब्न-ए-सफ़ी
शेर
यूँ भी इक दफ़्तर ने मुझ पे ख़ौफ़ तारी कर दिया
बिल रक़ीबों का था मेरे नाम जारी कर दिया
दिलावर फ़िगार
शेर
ग़ज़ल कहता है डट के मसनवी बिल-अज़्म कहता है
दिमाग़ इस का उलट जाए तो नसरी नज़्म कहता है
खालिद इरफ़ान
शेर
जब यार ने उठा कर ज़ुल्फ़ों के बाल बाँधे
तब मैं ने अपने दिल में लाखों ख़याल बाँधे