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शेर
रोना बिना-ए-ख़ाना-ख़राबी है मिस्ल-ए-शम्अ'
टपके जो सक़्फ़-ए-चश्म हो तो क़स्र-ए-तन ख़राब
इमदाद अली बहर
शेर
तोहमत-ए-जुर्म-ओ-ख़ता हिर्स-ओ-हवा ग़फ़लत-ए-दिल
हम ने बाज़ार से हस्ती के लिया क्या क्या कुछ
मिर्ज़ा मासिता बेग मुंतही
शेर
मुझ को मारा है हर इक दर्द ओ दवा से पहले
दी सज़ा इश्क़ ने हर जुर्म-ओ-ख़ता से पहले
फ़िराक़ गोरखपुरी
शेर
बे तेरे क्या वहशत हम को तुझ बिन कैसा सब्र ओ सुकूँ
तू ही अपना शहर है जानी तू ही अपना सहरा है
इब्न-ए-इंशा
शेर
बोसा-ए-सब्ज़ा-ए-ख़त दे के गुनहगार किया
तू ने काँटों में मुझे ऐ गुल-ए-रअना खींचा