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शेर
देखने वाले ये कहते हैं किताब-ए-दहर में
तू सरापा हुस्न का नक़्शा है मैं तस्वीर-ए-इश्क़
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
शेर
तह कर चुके बिसात-ए-ग़म-ओ-फ़िक्र-ए-रोज़गार
तब ख़ानक़ाह-ए-इश्क़-ओ-मोहब्बत में आए हैं
अमीर हम्ज़ा साक़िब
शेर
जिसे इशरत-कदा-ए-दहर समझता था मैं
आख़िर-ए-कार वो इक ख़्वाब-ए-परेशाँ निकला
आग़ा मोहम्मद तक़ी ख़ान तरक़्क़ी
शेर
आशिक़ों को नफ़अ कब है इंक़िलाब-ए-दहर से
हम वही बंदे रहेंगे बुत ख़ुदा हो जाएँगे