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शेर
तिरे इंतिज़ार में इस तरह मिरा अहद-ए-शौक़ गुज़र गया
सर-ए-शाम जैसे बिसात-ए-दिल कोई ख़स्ता-हाल समेट ले
राम रियाज़
शेर
दीदा ओ दिल ने दर्द की अपने बात भी की तो किस से की
वो तो दर्द का बानी ठहरा वो क्या दर्द बटाएगा
इब्न-ए-इंशा
शेर
दोनों हों कैसे एक जा 'मेहदी' सुरूर-ओ-सोज़-ए-दिल
बर्क़-ए-निगाह-ए-नाज़ ने गिर के बता दिया कि यूँ
एस ए मेहदी
शेर
चुभेंगे ज़ीरा-हा-ए-शीशा-ए-दिल दस्त-ए-नाज़ुक में
सँभल कर हाथ डाला कीजिए मेरे गरेबाँ पर
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
शेर
बिसात-ए-इज्ज़ में था एक दिल यक क़तरा ख़ूँ वो भी
सो रहता है ब-अंदाज़-ए-चकीदन सर-निगूँ वो भी
मिर्ज़ा ग़ालिब
शेर
किस तरह कर दिया दिल-ए-नाज़ुक को चूर-चूर
इस वाक़िआ' की ख़ाक है पत्थर को इत्तिलाअ'
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
शेर
तह कर चुके बिसात-ए-ग़म-ओ-फ़िक्र-ए-रोज़गार
तब ख़ानक़ाह-ए-इश्क़-ओ-मोहब्बत में आए हैं
अमीर हम्ज़ा साक़िब
शेर
इलाज-ए-दर्द-ए-दिल तुम से मसीहा हो नहीं सकता
तुम अच्छा कर नहीं सकते मैं अच्छा हो नहीं सकता