aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "buu-e-aflaakii"
आँखें बता रही हैं कि जागे हो रात कोइन साग़रों में बू-ए-शराब-ए-विसाल है
नस्रीं में ये महक है न ये नस्तरन में हैबू-ए-गुल-ए-मुराद तिरे पैरहन में है
ब-रंग-ए-बू-ए-गुल उस बाग़ के हम आश्ना होतेकि हमराह-ए-सबा टुक सैर करते फिर हवा होते
काँटे से भी निचोड़ ली ग़ैरों ने बू-ए-गुलयारों ने बू-ए-गुल से भी काँटा बना दिया
कभी न ख़ाली मिला बू-ए-हम-नफ़स से दिमाग़तमाम बाग़ में जैसे कोई छुपा हुआ है
बन गए इंसान अपनी ज़ात में जंगल 'मुनीर'बस्तियों से उड़ गई है बू-ए-आदम-ज़ाद तक
उड़ जाऊँगा बहार में मानिंद-ए-बू-ए-गुलज़ंजीर मेरे पा-ए-जुनूँ में हज़ार डाल
अश्कों में रंग-ओ-बू-ए-चमन दूर तक मिलेजिस दम असीर हो के चले गुल्सिताँ से हम
कमी कमी सी थी कुछ रंग-ओ-बू-ए-गुलशन मेंलब-ए-बहार से निकली हुई दुआ तुम हो
मोहब्बत थी चमन से लेकिन अब ये बे-दिमाग़ी हैकि मौज-ए-बू-ए-गुल से नाक में आता है दम मेरा
ऐसी क़िस्मत कहाँ कि जाम आताबू-ए-मय भी इधर नहीं आई
बू-ए-गुल था मैं हाथ क्या आताकितने सय्याद ले के दाम आए
घेर लेती है कोई ज़ुल्फ़, कोई बू-ए-बदनजान कर कोई गिरफ़्तार नहीं होता यार
दिमाग़ दे जो ख़ुदा गुलशन-ए-मोहब्बत मेंहर एक गुल से तिरे पैरहन की बू आए
बू-ए-इक़रार भी आती हो जो इंकार के साथऐसे इंकार पसंदीदा हैं इक़रार के साथ
उलझी थीं जिन नसीम से कलियाँ ख़बर न थीपहुँचेगी बू-ए-नाज़ मिरे पैरहन से दूर
'अंजुम' आ'साब सँभालो है यही रंग-ए-बहारबू-ए-शौक़ आने लगी यार की अंगड़ाई से
छुपा न राज़ मोहब्बत का बू-ए-गुल की तरहजो बात दिल में थी वो दरमियाँ निकल आई
तू बू-ए-गुल है और परेशाँ हुआ हूँ मैंदोनों में एक रिश्ता-ए-आवारगी तो है
बिखर गया हूँ फ़ज़ाओं में बू-ए-गुल की तरहमिरे वजूद में वुसअत मिरी समा न सकी
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