आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "calendar"
शेर के संबंधित परिणाम "calendar"
शेर
तुम्हारे हिज्र में जब भी कैलेंडर पर निगाह डाली
सितंबर के महीने को सितमगर ही पढ़ा मैं ने
अतीब क़ादरी
शेर
इलाही क्या इलाक़ा है वो जब लेता है अंगड़ाई
मिरे सीने में सब ज़ख़्मों के टाँके टूट जाते हैं
जुरअत क़लंदर बख़्श
शेर
मिल गए थे एक बार उस के जो मेरे लब से लब
'उम्र भर होंटों पे अपने मैं ज़बाँ फेरा किया
जुरअत क़लंदर बख़्श
शेर
कैफ़ियत महफ़िल-ए-ख़ूबाँ की न उस बिन पूछो
उस को देखूँ न तो फिर दे मुझे दिखलाई क्या
जुरअत क़लंदर बख़्श
शेर
भरी जो हसरत-ओ-यास अपनी गुफ़्तुगू में है
ख़ुदा ही जाने कि बंदा किस आरज़ू में है
जुरअत क़लंदर बख़्श
शेर
सभी इनआम नित पाते हैं ऐ शीरीं-दहन तुझ से
कभू तू एक बोसे से हमारा मुँह भी मीठा कर
जुरअत क़लंदर बख़्श
शेर
आँख उठा कर उसे देखूँ हूँ तो नज़रों में मुझे
यूँ जताता है कि क्या तुझ को नहीं डर मेरा
जुरअत क़लंदर बख़्श
शेर
लगते ही हाथ के जो खींचे है रूह तन से
क्या जानें क्या वो शय है उस के बदन के अंदर