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शेर
तुम्हारी ज़ुल्फ़ न गिर्दाब-ए-नाफ़ तक पहुँची
हुई न चश्मा-ए-हैवाँ से फ़ैज़-याब घटा
वज़ीर अली सबा लखनवी
शेर
जो शब को ख़्वाब में आया वो चश्मा-ए-हैवाँ
बहाए चश्म ने रो रो के ख़्वाब में दरिया