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शेर
क़िस्सा छेड़ा मेहर ओ वफ़ा का अव्वल-ए-शब उन आँखों ने
रात कटी और उम्र गुज़ारी फिर भी बात अधूरी थी
सलीम अहमद
शेर
अजीब लुत्फ़ कुछ आपस की छेड़-छाड़ में है
कहाँ मिलाप में वो बात जो बिगाड़ में है
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
शेर
जब से उस ने शहर को छोड़ा हर रस्ता सुनसान हुआ
अपना क्या है सारे शहर का इक जैसा नुक़सान हुआ
मोहसिन नक़वी
शेर
हाथ टूटें मैं ने गर छेड़ी हों ज़ुल्फ़ें आप की
आप के सर की क़सम बाद-ए-सबा थी मैं न था