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शेर
उठे उठ कर चले चल कर थमे थम कर कहा होगा
मैं क्यूँ जाऊँ बहुत हैं उन की हालत देखने वाले
मुज़्तर ख़ैराबादी
शेर
उठे उठ कर चले चल कर रुके रुक कर कहा होगा
मैं क्यूँ जाऊँ बहुत हैं उन की हालत देखने वाले
इफ़्तिख़ार हुसैन मुज़्तर ख़ैराबादी
शेर
साक़िया अब के बड़े ज़ोरों पे हैं हम मय-परस्त
चल के वाइ'ज़ को सर-ए-मिंबर लताड़ा चाहिए
वज़ीर अली सबा लखनवी
शेर
हिरन सब हैं बराती और दिवाना बन का दूल्हा है
पहर ख़िलअ'त कूँ उर्यानी की फिरता है बना छैला
सिराज औरंगाबादी
शेर
जिस कू में हो गुज़ार-ए-परी-तलअतान-हिन्द
वो कूचा क्यूँके रू-कश-ए-चीन-ओ-चगिल न हो