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शेर
मुस्कुराता हूँ तो रोता है मिरा ज़ख़्म-ए-जिगर
रोने लगता हूँ तो होंटों को चुभन होती है
महवर सिरसिवी
शेर
वक़्त हर ज़ख़्म को भर देता है कुछ भी कीजे
याद रह जाती है हल्की सी चुभन की हद तक
इमरान-उल-हक़ चौहान
शेर
कुछ क़फ़स की तीलियों से छन रहा है नूर सा
कुछ फ़ज़ा कुछ हसरत-ए-परवाज़ की बातें करो