aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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रहता था सामने तिरा चेहरा खुला हुआपढ़ता था मैं किताब यही हर क्लास में
किलास-रूम में इतना समय नहीं होताये सानिहा तुम्हें घर से बना के लाना था
रोज़ अच्छे नहीं लगते आँसूख़ास मौक़ों पे मज़ा देते हैं
मोहब्बत के लिए कुछ ख़ास दिल मख़्सूस होते हैंये वो नग़्मा है जो हर साज़ पर गाया नहीं जाता
उस से कुछ ख़ास तअल्लुक़ भी नहीं है अपनामैं परेशान हुआ जिस की परेशानी पर
हर एक बात के यूँ तो दिए जवाब उस नेजो ख़ास बात थी हर बार हँस के टाल गया
आज बहुत उदास हूँयूँ कोई ख़ास ग़म नहीं
ये तर्ज़-ए-ख़ास है कोई कहाँ से लाएगाजो हम कहेंगे किसी से कहा न जाएगा
तेरी मस्जिद में वाइज़ ख़ास हैं औक़ात रहमत केहमारे मय-कदे में रात दिन रहमत बरसती है
दिन तो फिर दिन है गुज़र जाता हैरात कटती है बड़ी मुश्किल से
हसरत पे उस मुसाफ़िर-ए-बे-कस की रोइएजो थक गया हो बैठ के मंज़िल के सामने
जब उन की बज़्म में हर ख़ास ओ आम रुस्वा हैअजीब क्या है अगर मेरा नाम रुस्वा है
वहशतें इश्क़ और मजबूरीक्या किसी ख़ास इम्तिहान में हूँ
क़ुव्वत-ए-तामीर थी कैसी ख़स-ओ-ख़ाशाक मेंआँधियाँ चलती रहीं और आशियाँ बनता गया
तुझ में कस-बल है तो दुनिया को बहा कर ले जाचाय की प्याली में तूफ़ान उठाता क्या है
अदा-ए-ख़ास से 'ग़ालिब' हुआ है नुक्ता-सरासला-ए-आम है यारान-ए-नुक्ता-दाँ के लिए
मर गया ख़ास तौर पर मैं भीजिस तरह आम लोग मरते हैं
बहुत ही कम नज़र आया मुझे इख़्लास लोगों मेंये दौलत बट गई शायद बहुत ही ख़ास लोगों में
गया क़रीब जो परवाना रह गया जल करजमाल ख़ास हदों तक जमाल होता है
ले आएगा इक रोज़ गुल ओ बर्ग भी 'सरवत'बाराँ का मुसलसल ख़स-ओ-ख़ाशाक पे होना
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