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शेर
कटते भी चलो बढ़ते भी चलो बाज़ू भी बहुत हैं सर भी बहुत
चलते भी चलो कि अब डेरे मंज़िल ही पे डाले जाएँगे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
शेर
ठिकाना पूछते हैं सब तुम्हारा मुझ से आ आ कर
कोई तस्वीर दो ऐसी लगा दूँ मैं दर-ए-दिल पर
जलील मानिकपूरी
शेर
आख़िर गिल अपनी सर्फ़-ए-दर-ए-मय-कदा हुई
पहुँचे वहाँ ही ख़ाक जहाँ का ख़मीर हो