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शेर
ख़्वाब दरवाज़ों से दाख़िल नहीं होते लेकिन
ये समझ कर भी वो दरवाज़ा खुला रक्खेगा
अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा
शेर
हम सराबों में हुए दाख़िल तो ये हम पर खुला
तिश्नगी सब में थी लेकिन तिश्नगी में कौन था
भारत भूषण पन्त
शेर
जो पहुँचेंगे तो हम पहुँचेंगे मर कर कू-ए-जानाँ तक
कि जीते-जी कोई जन्नत में दाख़िल हो नहीं सकता
जलील मानिकपूरी
शेर
मिरे अल्फ़ाज़ में उस की हलावत हो गई दाख़िल
मिरे लहजे में शामिल हो गई है गुफ़्तुगू उस की