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शेर
बोसा जो माँगा बज़्म में फ़रमाया यार ने
ये दिन दहाड़े आए हैं पगड़ी उतारने
मिर्ज़ा मासिता बेग मुंतही
शेर
वतन की ख़ाक से मर कर भी हम को उन्स बाक़ी है
मज़ा दामान-ए-मादर का है इस मिट्टी के दामन में
चकबस्त बृज नारायण
शेर
बस अब तो दामन-ए-दिल छोड़ दो बेकार उम्मीदो
बहुत दुख सह लिए मैं ने बहुत दिन जी लिया मैं ने
साहिर लुधियानवी
शेर
बदन गुल चेहरा गुल रुख़्सार गुल लब गुल दहन है गुल
सरापा अब तो वो रश्क-ए-चमन है ढेर फूलों का
नज़ीर अकबराबादी
शेर
सभी इनआम नित पाते हैं ऐ शीरीं-दहन तुझ से
कभू तू एक बोसे से हमारा मुँह भी मीठा कर
जुरअत क़लंदर बख़्श
शेर
इक आग ग़म-ए-तन्हाई की जो सारे बदन में फैल गई
जब जिस्म ही सारा जलता हो फिर दामन-ए-दिल को बचाएँ क्या
अतहर नफ़ीस
शेर
कमर धोका दहन उक़्दा ग़ज़ाल आँखें परी चेहरा
शिकम हीरा बदन ख़ुशबू जबीं दरिया ज़बाँ ईसा