aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "dar-ba-dar"
रुस्वा हुए ज़लील हुए दर-ब-दर हुएहक़ बात लब पे आई तो हम बे-हुनर हुए
शहर में मज़दूर जैसा दर-ब-दर कोई नहींजिस ने सब के घर बनाए उस का घर कोई नहीं
दर-ब-दर ठोकरें खाईं तो ये मालूम हुआघर किसे कहते हैं क्या चीज़ है बे-घर होना
लिए फिरा जो मुझे दर-ब-दर ज़माने मेंख़याल तुझ को दिल-ए-बे-क़रार किस का था
मैं अपनी रूह लिए दर-ब-दर भटकता रहाबदन से दूर मुकम्मल वजूद था मेरा
दर-ब-दर होने से पहले कभी सोचा भी न थाघर मुझे रास न आया तो किधर जाऊँगा
मैं दर-ब-दर हूँ अभी अपनी जुस्तुजू में बहुतमैं अपने लहजे को अंदाज़ दे रहा हूँ अभी
दर-ब-दर फिरने ने मेरी क़द्र खोई ऐ फ़लकउन के दिल में ही जगह मिलती जो ख़ल्वत माँगता
दर-ब-दर हो गए ताबीर की धुन में कितनेइन हसीं ख़्वाबों से बढ़ कर कोई सफ़्फ़ाक नहीं
फिर हुआ ऐसे कि मुझ को दर-ब-दर करने के बा'दनाम उस बस्ती का मेरे नाम पर रक्खा गया
कभी तेरा दर कभी दर-ब-दर कभी 'अर्श पर कभी फ़र्श परग़म-ए-'आशिक़ी तिरा शुक्रिया मैं कहाँ कहाँ से गुज़र गया
दर-ब-दर मारा-फिरा मैं जुस्तुजू-ए-यार मेंज़ाहिद-ए-काबा हुआ रहबान-ए-बुत-ख़ाना हुआ
दर-ब-दर मैं ही नहीं वक़्त भी इन राहों परज़ख़्मी एहसास की संगत में दुखी दिखता है
मुझ को ये दर-ब-दरी तू ने ही बख़्शी है मगरजब चली घर से तो मैं नाम तिरा ले के चली
बिना मुर्ग़े के पर झटकती हैंमुर्ग़ियाँ दर-ब-दर भटकती हैं
मिरे ही घर में रहना चाहती हैमोहब्बत दर-ब-दर होते हुए भी
घर तो ऐसा कहाँ का था लेकिनदर-ब-दर हैं तो याद आता है
एक आसेब है हर इक घर मेंएक ही चेहरा दर-ब-दर चमके
कुछ बे-ठिकाना करती रहीं हिजरतें मुदामकुछ मेरी वहशतों ने मुझे दर-ब-दर किया
कुछ मुझे भी यहाँ क़रार नहींकुछ तिरा ग़म भी दर-ब-दर है यहाँ
Devoted to the preservation & promotion of Urdu
A Trilingual Treasure of Urdu Words
Online Treasure of Sufi and Sant Poetry
World of Hindi language and literature
The best way to learn Urdu online
Best of Urdu & Hindi Books