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शेर
मुख़्तसर ये है हमारी दास्तान-ए-ज़िंदगी
इक सुकून-ए-दिल की ख़ातिर उम्र भर तड़पा किए
मुईन अहसन जज़्बी
शेर
सब ने माना मरने वाला दहशत-गर्द और क़ातिल था
माँ ने फिर भी क़ब्र पे उस की राज-दुलारा लिक्खा था
अहमद सलमान
शेर
बदन गुल चेहरा गुल रुख़्सार गुल लब गुल दहन है गुल
सरापा अब तो वो रश्क-ए-चमन है ढेर फूलों का
नज़ीर अकबराबादी
शेर
मिरी दास्ताँ भी अजीब है वो क़दम क़दम मिरे साथ था
जिसे राज़-ए-दिल न बता सका जिसे दाग़-ए-दिल न दिखा सका