aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
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जान-ओ-दिल हैं उदास से मेरेउठ गया कौन पास से मेरे
खा के ग़म ख़्वान-ए-इश्क़ के मेहमानहाथ ख़ून-ए-जिगर से धोते हैं
वो ताब-ओ-तवाँ कहाँ है यारबजो इस दिल-ए-ना-तवाँ में तब था
नाख़ुन न पहुँचा आबला-ए-दिल तलक 'हसन'हम मर गए ये हम से न आख़िर गिरह गई
इज़हार-ए-ख़मोशी में है सौ तरह की फ़रियादज़ाहिर का ये पर्दा है कि मैं कुछ नहीं कहता
इतने आँसू तो न थे दीदा-ए-तर के आगेअब तो पानी ही भरा रहता है घर के आगे
शब-ए-अव्वल तो तवक़्क़ो पे तिरे वादे केसहल होती है बला होती है पर आख़िर-ए-शब
मानिंद-ए-अक्स देखा उसे और न मिल सकेकिस रू से फिर कहेंगे कि रोज़-ए-विसाल था
मिरे आईना-ए-दिल का उसे मंज़ूर था लेनाजो ग़ैरों में कहा भोंडा बुरा बद-रंग नाकारा
दर्द करता है तप-ए-इश्क़ की शिद्दत से मिरासर जुदा सीना जुदा क़ल्ब जुदा शाना जुदा
ज़ुल्म कब तक कीजिएगा इस दिल-ए-नाशाद परअब तो इस बंदे पे टुक कीजे करम बंदा-नवाज़
दिल-ओ-जाँ जो हैं ये सो अपने नहींसमझते हैं इन को तो हम आप का
था रू-ए-ज़मीं तंग ज़ि-बस हम ने निकालीरहने के लिए शेर के आलम में ज़मीं और
कूचा-ए-यार है और दैर है और काबा हैदेखिए इश्क़ हमें आह किधर लावेगा
मत बख़्त-ए-ख़ुफ़्ता पर मिरे हँस ऐ रक़ीब तूहोगा तिरे नसीब भी ये ख़्वाब देखना
मैं भी इक मअनी-ए-पेचीदा अजब था कि 'हसन'गुफ़्तुगू मेरी न पहुँची कभी तक़रीर तलक
काबे को गया छोड़ के क्यूँ दिल को तू ऐ शैख़टुक जी में समझता तो सही याँ भी तो रब था
किस वक़्त में बसा था इलाही ये मुल्क-ए-दिलसदमे ही पड़ते रहते हैं नित इस दयार पर
जब लगे होंगे जुदा हज़रत-ए-दिल हम ने कहाफिर भी मिलिएगा कभी हम से कहा या क़िस्मत
मत पोंछ अबरू-ए-अरक़-आलूद हाथ सेलाज़िम है एहतियात कि है आब-दार तेग़
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