aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "dhaa.iye"
बुत-ख़ाना तोड़ डालिए मस्जिद को ढाइएदिल को न तोड़िए ये ख़ुदा का मक़ाम है
ग़रज़ कि काट दिए ज़िंदगी के दिन ऐ दोस्तवो तेरी याद में हों या तुझे भुलाने में
आदतन तुम ने कर दिए वादेआदतन हम ने ए'तिबार किया
दाग़ दुनिया ने दिए ज़ख़्म ज़माने से मिलेहम को तोहफ़े ये तुम्हें दोस्त बनाने से मिले
जुदाइयों के ज़ख़्म दर्द-ए-ज़िंदगी ने भर दिएतुझे भी नींद आ गई मुझे भी सब्र आ गया
सियाह रात नहीं लेती नाम ढलने कायही तो वक़्त है सूरज तिरे निकलने का
जो उन मासूम आँखों ने दिए थेवो धोके आज तक मैं खा रहा हूँ
उन के रुख़्सार पे ढलके हुए आँसू तौबामैं ने शबनम को भी शोलों पे मचलते देखा
दिखाई दिए यूँ कि बे-ख़ुद कियाहमें आप से भी जुदा कर चले
शाम ढलने से फ़क़त शाम नहीं ढलती हैउम्र ढल जाती है जल्दी पलट आना मिरे दोस्त
जज़्बा-ए-इश्क़ सलामत है तो इंशा-अल्लाहकच्चे धागे से चले आएँगे सरकार बंधे
ख़ुदा करे न ढले धूप तेरे चेहरे कीतमाम उम्र तिरी ज़िंदगी की शाम न हो
आ गई याद शाम ढलते हीबुझ गया दिल चराग़ जलते ही
बोसा-ए-रुख़्सार पर तकरार रहने दीजिएलीजिए या दीजिए इंकार रहने दीजिए
कभी तो शाम ढले अपने घर गए होतेकिसी की आँख में रह कर सँवर गए होते
किसी ने रख दिए ममता-भरे दो हाथ क्या सर परमिरे अंदर कोई बच्चा बिलक कर रोने लगता है
हर एक बात के यूँ तो दिए जवाब उस नेजो ख़ास बात थी हर बार हँस के टाल गया
बोसा जो रुख़ का देते नहीं लब का दीजिएये है मसल कि फूल नहीं पंखुड़ी सही
चल दिए सू-ए-हरम कू-ए-बुताँ से 'मोमिन'जब दिया रंज बुतों ने तो ख़ुदा याद आया
इसी खंडर में कहीं कुछ दिए हैं टूटे हुएइन्हीं से काम चलाओ बड़ी उदास है रात
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