aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "dharnaa"
ज़मीं पे पाँव ज़रा एहतियात से धरनाउखड़ गए तो क़दम फिर कहाँ सँभलते हैं
वो रात नींद की दहलीज़ पर तमाम हुईअभी तो ख़्वाब पे इक और ख़्वाब धरना था
दे रहे हैं इस लिए जंगल में धरना जानवरएक चूहे को रिहाइश के लिए बिल चाहिए
कुछ और दिन अभी इस जा क़याम करना थायहाँ चराग़ वहाँ पर सितारा धरना था
सियाह रात नहीं लेती नाम ढलने कायही तो वक़्त है सूरज तिरे निकलने का
मुद्दत के ब'अद आज उसे देख कर 'मुनीर'इक बार दिल तो धड़का मगर फिर सँभल गया
धमका के बोसे लूँगा रुख़-ए-रश्क-ए-माह काचंदा वसूल होता है साहब दबाव से
शाम ढलने से फ़क़त शाम नहीं ढलती हैउम्र ढल जाती है जल्दी पलट आना मिरे दोस्त
अब रात की दीवार को ढाना है ज़रूरीये काम मगर मुझ से अकेले नहीं होगा
न गोर-ए-सिकंदर न है क़ब्र-ए-दारामिटे नामियों के निशाँ कैसे कैसे
दो ही चीज़ें इस धरती में देखने वाली हैंमिट्टी की सुंदरता देखो और मुझे देखो
छोटी पड़ती है अना की चादरपाँव ढकता हूँ तो सर खुलता है
रात क्या सोए कि बाक़ी उम्र की नींद उड़ गईख़्वाब क्या देखा कि धड़का लग गया ताबीर का
कुछ इलाहाबाद में सामाँ नहीं बहबूद केयाँ धरा क्या है ब-जुज़ अकबर के और अमरूद के
मौत बर-हक़ है तो फिर मौत से डरना कैसाएक हिजरत ही तो है नक़्ल-ए-मकानी ही तो है
मिरी नज़र में गए मौसमों के रंग भी हैंजो आने वाले हैं उन मौसमों से डरना क्या
उतर के नाव से भी कब सफ़र तमाम हुआज़मीं पे पाँव धरा तो ज़मीन चलने लगी
हम क्या करें सवाल ये सोचा नहीं अभीवो क्या जवाब देंगे ये धड़का अभी से है
क्या क्या दिलों का ख़ौफ़ छुपाना पड़ा हमेंख़ुद डर गए तो सब को डराना पड़ा हमें
हम अपनी धरती से अपनी हर सम्त ख़ुद तलाशेंहमारी ख़ातिर कोई सितारा नहीं चलेगा
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