aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "diimak"
ख़तों को खोलती दीमक का शुक्रिया वर्नातड़प रही थी लिफ़ाफ़ों में बे-ज़बानी पड़ी
आलम में जिस की धूम थी उस शाहकार परदीमक ने जो लिखे कभी वो तब्सिरे भी देख
अब की बार जो घर जाना तो सारे एल्बम ले आनावक़्त की दीमक लग जाती है यादों की अलमारी में
बिछड़ जाने का ग़म तौबा अरे तौबा अरे तौबाये वो है जो कि दीमक की तरह सब चाट जाता है
जैसे दीमक-ज़दा कोई लकड़ीयूँ तिरा हिज्र खाए जाता है
दर्द का एहसास रक्खा है फ़क़त इंसान मेंहैफ़ दीमक जी रही है 'मीर' के दीवान में
उस ग़ैरत-ए-नाहीद की हर तान है दीपकशोला सा लपक जाए है आवाज़ तो देखो
आँखों में दमक उट्ठी है तस्वीर-ए-दर-ओ-बामये कौन गया मेरे बराबर से निकल कर
फिर मिरी याद आ रही होगीफिर वो दीपक बुझा रही होगी
दमक रहा था बहुत यूँ तो पैरहन उस काज़रा से लम्स ने रौशन किया बदन उस का
अच्छा हुआ ज़बान-ए-ख़मोशी न तुम पढ़ेशिकवे मिरे वगर्ना रुलाते तुम्हें बहुत
दमक रहा है जो नस नस की तिश्नगी से बदनइस आग को न तिरा पैरहन छुपाएगा
ये कैसी बद-दुआ' दी है किसी नेसमुंदर हूँ मगर खारा हुआ हूँ
वतन-परस्ती हमारा मज़हब हैं जिस्म-ओ-जाँ मुल्क की अमानतकरेंगे बरपा क़हर अदू पर रहेगा दाइम वतन सलामत
अज़ल से बरसे है पाकीज़गी फ़लक से यहाँनुमायाँ होवे है फिर शक्ल-ए-बहन में वो यहाँ
कि है मुख़्तसर दास्ताँ इश्क़ कीगले मिल के कोई गले पड़ गया
था कभी उन की निगाहों में बुलंद अपना मक़ामइतनी ऊँचाई से गिर कर भी कोई बचता है
हवस-ए-ज़र ने किया रिश्तों का जो हाल न पूछख़ूँ रुलाता है यहाँ ख़ून का रिश्ता अपना
यूँ गुफ़्तुगू-ए-उल्फ़त दिलचस्प हम करेंगेआँखों से तुम कहोगे आँखों से हम सुनेंगे
लम्हात-ए-वस्ल याद जो आए शब-ए-फ़िराक़यक-लख़्त सुर्ख़ हो गए आरिज़ बे-इख़्तियार
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