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शेर
एक बोसे से मुराद-ए-दिल-ए-नाशाद तो दो
कुछ न दो हाथ से पर मुँह से मिरी दाद तो दो
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
शेर
'नाशाद' न कोई नग़्मा है ये दर्द भरा इक नाला है
क्या समझे कोई दर्द-ए-जिगर जब चोट न दिल पर खाई हो
राबिया सुलताना नाशाद
शेर
गिरफ़्तारी की लज़्ज़त और निरा आज़ाद क्या जाने
ख़ुशी से काटना ग़म का दिल-ए-नाशाद क्या जाने
इश्क़ औरंगाबादी
शेर
बनाते हैं हज़ारों ज़ख़्म-ए-ख़ंदाँ ख़ंजर-ए-ग़म से
दिल-ए-नाशाद को हम इस तरह पुर-शाद करते हैं