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शेर
सुनते हैं एक 'फ़ैज़' ग़रीब-उद-दयार था
हक़ मग़्फ़िरत करे कि क़ज़ा हो गया वो शख़्स
फैज़ तबस्सुम तोंसवी
शेर
अभी आते नहीं उस रिंद को आदाब-ए-मय-ख़ाना
जो अपनी तिश्नगी को फ़ैज़-ए-साक़ी की कमी समझे
आल-ए-अहमद सुरूर
शेर
सुनो हिन्दू मुसलमानो कि फ़ैज़-ए-इश्क़ से 'हातिम'
हुआ आज़ाद क़ैद-ए-मज़हब-ओ-मशरब से अब फ़ारिग़