aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "fardan-fardan"
ज़िंदगी का दिया हुआ चेहरा इश्क़-दरिया में धो के आए हैं'फ़रहतुल्लाह'-ख़ाँ गए थे वहाँ फ़रहत-एहसास हो के आए हैं
'फ़रहत' तिरे नग़मों की वो शोहरत है जहाँ मेंवल्लाह तिरा रंग-ए-सुख़न याद रहेगा
अलम-बरदार तन्हाई था अपना 'फ़रहत-एहसास'हुजूम-ए-शहर के हाथों जो मारा जा रहा है
'फ़रहत' सुनाऊँ किस को कहानी मैं गाँव कीघर घर में ज़िंदा लाशें थीं मजबूर माओं की
जहाँ फ़ैज़ान-ए-आबादी बहुत हैवहाँ पर भी घने जंगल रहे थे
ज़लज़लों की नुमूद से 'फ़रहत'मुस्तक़र मुस्तक़र नहीं रहते
लाख अज्ज़ा में हो गया तक़्सीमक्या अजब मुजतमा' हुआ 'फ़रहत'
फ़र्दा-ओ-दी का तफ़रक़ा यक बार मिट गयाकल तुम गए कि हम पे क़यामत गुज़र गई
वक़्त फ़रमाँ-रवा-ए-दिल्ली हैऔर मैं भक्त हूँ बरेली का
ज़ुल्मतें वहशत-ए-फ़र्दा से निढालढूँढती फिरती हैं घर ख़्वाबों का
उमीद है हमें फ़र्दा हो या पस-ए-फ़र्दाज़रूर होएगी सोहबत वो यार बाक़ी है
अपना दुश्मन हो अगर कुछ है शुऊरइंतिज़ार-ए-वादा-ए-फ़र्दा न कर
यक़ीन-ए-वा'दा-ए-फ़र्दा हमें बावर नहीं आताज़बाँ से लाख कहिए आप के तेवर नहीं कहते
उसे भी याद रखना बादबानी साअतों मेंवो सय्यारा कनार-ए-सुब्ह-ए-फ़र्दा आ मिलेगा
उक़ूबत-हा-ए-फ़र्दा से डराता क्या है ऐ वाइज़ये दुनिया रफ़्ता रफ़्ता ख़ुद जहन्नम होती जाती है
अब वादा-ए-फ़र्दा में कशिश कुछ नहीं बाक़ीदोहराई हुई बात गुज़रती है गिराँ और
मैं एक पल के रंज-ए-फ़रावाँ में खो गयामुरझा गए ज़माने मिरे इंतिज़ार में
याद-ए-माज़ी ग़म-ए-इमरोज़ उमीद-ए-फ़र्दाकितने साए मिरे हमराह चला करते हैं
ग़म-ए-मौजूद ग़लत और ग़म-ए-फ़र्दा बातिलराहत इक ख़्वाब है जिस की कोई ताबीर नहीं
ज़हर जब आदमी उगलता हैतब मुक़ाबिल कहाँ सँभलता है
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