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शेर
निगाह-ओ-दिल से गुज़री दास्ताँ तक बात जा पहुँची
मिरे होंटों से निकली और कहाँ तक बात जा पहुँची
अनवर साबरी
शेर
निगाह ओ दिल में वही कर्बला का मंज़र था
मैं तिश्ना-लब थी मिरे सामने समुंदर था
सय्यदा नफ़ीस बानो शम्अ
शेर
दोनों हों कैसे एक जा 'मेहदी' सुरूर-ओ-सोज़-ए-दिल
बर्क़-ए-निगाह-ए-नाज़ ने गिर के बता दिया कि यूँ
एस ए मेहदी
शेर
दीदा ओ दिल ने दर्द की अपने बात भी की तो किस से की
वो तो दर्द का बानी ठहरा वो क्या दर्द बटाएगा
इब्न-ए-इंशा
शेर
जब कभी देखा है ऐ 'ज़ैदी' निगाह-ए-ग़ौर से
हर हक़ीक़त में मिले हैं चंद अफ़्साने मुझे
अली जवाद ज़ैदी
शेर
ज़ख़्म-ए-शमशीर-ए-निगह हैफ़ कि अच्छा न हुआ
करने को उस की दवा डॉक्टर अंग्रेज़ आया
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
कल बज़्म में सब पर निगह-ए-लुतफ़-ओ-करम थी
इक मेरी तरफ़ तू ने सितमगार न देखा