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शेर
रुस्वा अगर न करना था आलम में यूँ मुझे
ऐसी निगाह-ए-नाज़ से देखा था क्यूँ मुझे
मज़हर मिर्ज़ा जान-ए-जानाँ
शेर
ये फ़र्त-ए-शौक़ कि सूरत तिरी नहीं देखी
मगर जबीं तिरी ताज़ीम के लिए ख़म है
जागेश्वर दयाल नश्तर कानपुरी
शेर
वो पढ़ें भी तो खुले क्या मिरे मक्तूब का हाल
है सियह फ़र्त-ए-निगारिश से सरासर काग़ज़
सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम
शेर
कोई भूका जो फ़र्त-ए-ज़ोफ़ से कुछ लड़खड़ा जाए
तो दुनिया तंज़ कसती है उसे मद-मस्त कहती है
ज़मीर अतरौलवी
शेर
यार की फ़र्त-ए-नज़ाकत का हूँ मैं शुक्र-गुज़ार
ध्यान भी उस का मिरे दिल से निकलने न दिया
असद अली ख़ान क़लक़
शेर
बस कि है पेश-ए-नज़र पस्त-ओ-बुलंद-ए-आलम
ठोकरें खा के मिरी आँखों में ख़्वाब आता है
मुनीर शिकोहाबादी
शेर
ग़म-ओ-कर्ब-ओ-अलम से दूर अपनी ज़िंदगी क्यूँ हो
यही जीने का सामाँ हैं तो फिर इन में कमी क्यूँ हो