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शेर
'मासूम' अजब है हाल-ए-चमन हर शोले का यहाँ बदला है चलन
शाख़ों को जलाया जाता है ताइर को सताया जाता है
मासूम शर्क़ी
शेर
'फ़ितरत' दिल-ए-कौनैन की धड़कन तो ज़रा सुन
ये हज़रत-ए-इंसाँ ही की अज़्मत का बयाँ है
अब्दुल अज़ीज़ फ़ितरत
शेर
फ़ज़ा का तंग होना फ़ितरत-ए-आज़ाद से पूछो
पर-ए-पर्वाज़ ही क्या जो क़फ़स को आशियाँ समझे
फ़िगार उन्नावी
शेर
सर-ज़मीन-ए-हिंद पर अक़्वाम-ए-आलम के 'फ़िराक़'
क़ाफ़िले बसते गए हिन्दोस्ताँ बनता गया
फ़िराक़ गोरखपुरी
शेर
तू याद आया तिरे जौर-ओ-सितम लेकिन न याद आए
मोहब्बत में ये मा'सूमी बड़ी मुश्किल से आती है
फ़िराक़ गोरखपुरी
शेर
थी यूँ तो शाम-ए-हिज्र मगर पिछली रात को
वो दर्द उठा 'फ़िराक़' कि मैं मुस्कुरा दिया