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शेर
गदा-ए-शाह-ए-नजफ़ हूँ सो मेरे कासे से
जहाँ को चर्ख़-ए-सुख़न के सभी पते मिलेंगे
मुज़म्मिल अब्बास शजर
शेर
लिख लिख के 'नज़ीर' इस ग़ज़ल-ए-ताज़ा को ख़ूबाँ
रख लेंगे किताबों में ये रंग-ए-पर-ए-ताएर
नज़ीर अकबराबादी
शेर
तू अपने पाँव की मेहंदी छुड़ा के दे ऐ महर
फ़लक को चाहिए ग़ाज़ा रुख़-ए-क़मर के लिए