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शेर
गदा-ए-शाह-ए-नजफ़ हूँ सो मेरे कासे से
जहाँ को चर्ख़-ए-सुख़न के सभी पते मिलेंगे
मुज़म्मिल अब्बास शजर
शेर
कलीम आजिज़
शेर
फ़र्क़ ये है नुत्क़ के साँचे में ढल सकता नहीं
वर्ना जो आँसू है दुर्र-ए-शाह-वार-ए-नग़्मा है
गोपाल मित्तल
शेर
यही इंसाफ़ तिरे अहद में है ऐ शह-ए-हुस्न
वाजिब-उल-क़त्ल मोहब्बत के गुनहगार हैं सब
असद अली ख़ान क़लक़
शेर
तो शराफ़तों का मक़ाम है तो सदाक़तों का दवाम है
जहाँ फ़र्क़-ए-शाह-ओ-गदा नहीं तिरे दीन का वो निज़ाम है
नासिर शहज़ाद
शेर
मीलाद-ए-शह का दिन है कि ये रोज़-ए-ईद है
इक बादा-ख़्वार का सा सबा में ख़ुमार है
महमूदा अख़्तर महमूदा
शेर
क़त्ल अमीर-ए-शहर का लाडला बेटा कर गया
जुर्म मगर ग़रीब के लख़्त-ए-जिगर के सर गया